परिचय
हम भारत देश के निवासी हैं और हमारे भारत देश में कई जाति धर्म के लोग मिलजुलकर एक साथ रहते हैं। हमारे भारत देश में कई पर्व मनाए जाते हैं जिसमें से एक पर्व होली भी है जिसे रंगों का त्योहार कहा जाता है।
इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे के गले लगते हैं और एक दूसरे पर रंग-गुलाल फेंकते हैं तथा मिलजुल कर अच्छे-अच्छे पकवान बनाते और खाते हैं। इस त्यौहार को फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बच्चे, युवा, बूढ़े सभी लोग अपने आप को होली के रंग- बिरंगे रंग में रंग लेते हैं। होली मनाने से पहले की रात में होलिका जलाई जाती हैं उसके बाद ही दूसरे दिन रंग-बिरंगे होली का त्यौहार मनाया जाता है।
“रंगों का त्योहार ,आता है हर साल….
भूलकर सारे गिले-शिकवे चलो गले लग जाए आज…..”
होली मनाने की मान्यता
ऐसा माना जाता है कि भारत में या फिर कहीं भी कोई भी त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई मान्यता होती जरूर है जो हमारे पौराणिक कथाओं से जुड़ी होती है। ऐसे ही एक पौराणिक कथा होली के त्योहार से भी जुड़ी है, जो अग्रलिखित है…..
‘एक राक्षस जिसका नाम हिरण्यकश्यप था वह अपने आप को भगवान मानता था और अन्य लोगों से भी अपनी पूजा करने को कहता था। कुछ समय बाद उनको एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम प्रहलाद था।
प्रहलाद जन्म लेते ही भगवान श्री विष्णु का नाम लेना शुरू कर दिए क्योंकि वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे। ऐसा देखकर उनके पिता हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा उन्होंने प्रहलाद को विष्णु जी की भक्ति करने से रोका लेकिन जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रहलाद को कई तरह से मारने की कोशिश की। लेकिन प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ अर्थात उनको एक खरोच भी नहीं आई क्योंकि भगवान श्री विष्णु स्वयं उनकी रक्षा करने आते थे।
हिरण्यकश्यप प्रहलाद को किसी भी प्रकार से चोट नहीं पहुंचा सके तब उन्होंने अंत में अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को जान से मारने का काम सौंपा। उस समय होलिका को वरदान के रूप में एक चादर मिली थी जिसे ओढकर अगर वह आग में बैठ जाए तो उसे कुछ नहीं होगा, इसी बात का फायदा उठाते हुए होलिका प्रहलाद को अपने गोद में बैठा कर आग के बीच में बैठ गई ताकि प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए और होलिका तथा हिरण्यकश्यप का मकसद पूरा हो जाए।
लेकिन इस बार भी भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं होने दिया तथा उल्टा होलिका ही जलकर भस्म हो गई। उसी दिन भगवान विष्णु जी हिरण्यकश्यप का भी वध कर देते हैं क्योंकि उसके पापों का घड़ा भर चुका था और अब उसका अंत समय आ गया था और प्रहलाद जी को अमरता का वरदान देते हैं तथा अपनी भक्ति प्रदान करते हैं।
उसी दिन से होली का पर्व मनाया जाने लगा और उस दिन के एक दिन पहले अच्छाई पर बुराई की जीत करने के लिए होलिका दहन की जाती है।
होली कैसे मनाई जाती है
होली बसंत ऋतु में मनाए जाने वाला भारतीय त्योहार है लेकिन इस त्योहार को अन्य जगहों पर भी अन्य नाम से मनाया जाता है। सुंदर-सुंदर रंग – गुलाल से भरा यह त्यौहार हम सभी उत्साह के साथ मनाते है।
इस दिन हर कोई आपस के बैर को भुलाकर एक दूसरे पर रंग गुलाल डालते है और गले लग कर खुशियां मनाते है। इस दिन सभी युवा, बड़े, बुढे पूरे हर्षोल्लास के साथ रंगों से खेलते हैं। रंगों से और उत्साह से भरा यह त्यौहार हम सभी के मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम को जगाता है और आपस में नज़दीकियां लाता है।
इस दिन सभी लोग पुराने वाद – विवाद को भूलकर एक दूसरे के गले लगते हैं, रंग – गुलाल लगाते हैं ,छोटे बच्चे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं, त्यौहार की बधाई देते हैं, एक दूसरे के घर जाकर मिलते जुलते हैं, इस दिन एक दूसरे को तोहफा देकर भी होली के बधाई दी जाती है।
होली के दिन सभी लोग मिलजुल कर हरमोनिया, ढोलक, तबला, इत्यादि संगीत वादक के साथ गीत गाते हैं, नाच गाना करते हैं और घर-घर घूम कर यह कार्य किया जाता है क्योंकि होली को बुराई पर अच्छाई की जीत मानकर हर्षो उल्लास से मनाया जाता है। यह त्यौहार हम सबके मन में भाईचारे की भावना उत्पन्न करती है।
होली के दिन बनने वाले पकवान
होली के इस पावन अवसर पर घर में अनेक प्रकार के व्यंजन और मिठाइयां बनाई जाती हैं। इस दिन खासतौर पर घर पर गुजिया, नमकीन, हलवा, पूरी – सब्जी, जलेबी, मालपुआ, पानीपुरी ,दही बड़े ,कढी, पापड़ इत्यादि चीजें बनाई जाती हैं, और घर के बच्चे बूढ़े सभी इसे खूब मजे से और आनंद लेके खाते है ।
ब्रज की होली बड़ी सुहानी
होली के त्योहार को धर्म की अधर्म पर विजय मानी जाती है। वैसे तो पूरे भारत में होली का त्यौहार मनाया जाता है लेकिन ब्रज की होली सबसे निराली होती है। बरसाने की होली देखने के लिए देश से तो क्या विदेशों से भी लोग आते हैं क्योंकि बरसाने की होली का रंग ढंग ही सबसे अलग है।
इस दिन होली खेलने बरसाने के नंद गांव से आए पुरुष वर्ग होली गाते हैं और अपने सिर पर पगड़ी बांधकर या फिर लाठियों की मार से बचने के लिए लोहे का थाला लेकर आते हैं और नंद गांव की गोरी – गोरी छोरियों से लाठी खाते हैं अर्थात पुरुष वर्ग के ऊपर महिलाएं लाठियों से वार करती हैं और पुरुष उनके लाठियों के मार से बचकर होली का गीत गाते हुए आगे बढ़ते हैं इस दौरान रंग और गुलाल से पूरा वातावरण मनमोहक और आकर्षक हो जाता है।
ब्रज में इस त्यौहार के दिन लोग लठमार होली खेलने के बाद आपस में मिलते जुलते हैं ,इसी स्नेह और प्रेम से एक दूसरे के घर जाते हैं, अच्छे-अच्छे पकवान खाते हैं, तोहफे देते हैं और पुराने सभी गिले-शिकवे को भूलकर भाईचारा निभाते हैं।
ब्रज के साथ-साथ मथुरा और वृंदावन में भी होली का बड़ा ही सुहावना दृश्य देखने को मिलता है। मथुरा और वृंदावन में तो सभी लोग आपस में प्रेम व्यवहार के साथ झूम उठते हैं, नाचते हैं, गाते हैं, रंग गुलाल उड़ाते हैं, मिठाइयां खाते हैं और बड़े ही प्रेम और उत्साह के साथ होली का त्यौहार मनाते हैं।
होली सामाजिक तथा हिंदुओं का त्योहार माना जाता है किंतु इतिहास के पन्नों में दर्शाए गए प्रमाणों से यह पता चलता है कि हिंदुओं के साथ-साथ इस त्योहार को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मुसलमान शासक भी मनाते थे। लखनऊ के शासक मुसलमान वाजिद अली शाह का नाम ऐसे शासकों में सबसे पहले लिया जाता है जो होली के त्यौहार को रंग-बिरंगे रंग गुलाल तथा उत्साह से मनाते थे।
इतिहास के पन्नों में ऐसा लिखा है कि वाजिद अली शाह जी भगवान श्री कृष्ण जी पर कविताएं लिखते थे, होली के गाने लिखते थे तथा कैसर बाग में होली के दिन नाचने व गाने की व्यवस्था कराते थे और राज्य के सभी धर्म के लोगों को इस त्योहार को मनाने की प्रेरणा देते थे और सभी को भाईचारे का पाठ सिखाते थे। हिंदू – मुसलमानों के बीच स्नेह और भाईचारे का प्रोत्साहन देने वाले यह बहुत ही अच्छे शासक माने जाते थे।
आज के समय में होली
वैसे तो होली का त्यौहार बड़ा ही पावन और प्रेम का अवसर प्रदान करने वाला एक पर्व है लेकिन वर्तमान समय में इस पर्व को भी लोग गंदा करते जा रहे हैं। आज के समय में होली मनाने का लोग बड़ा ही गलत तरीका इस्तेमाल करते हैं इस दिन लोग आपसी प्रेम व्यवहार और भाईचारे को बढ़ावा देने के बजाय अपनी दुश्मनी निकालते हैं, मिठाई और अच्छे-अच्छे पकवानों की जगह शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं, खून खराबा करते हैं, अपना मतलब निकालते हैं।
राह चलते लोगों के ऊपर कीचड़, मिट्टी फेकते हैं, लोगों के कपड़े फाड़ देते हैं ,इत्यादि हर गलत कार्य को आज लोग होली के दिन अपनाने लगे हैं। जिससे आज की होली अच्छाई पर बुराई की जीत होने लगी है, आज लड़किया भी होली के दिन घर से निकलने पर बहुत सोचती हैं क्योंकि आज के लोगों की निगाहें और नियत बहुत ही खोटी हो गई है।
यही कारण है कि आज लोग प्रेम और स्नेह का मतलब भूलकर दुश्मनी पर उतर आए हैं, आदमी ही आदमी का दुश्मन बन बैठा है, आज लोग भाईचारा तो दूर आपस मे प्रेम करना भी भूल गए हैं, अपने से बड़ों का आदर करना भूल गए हैं छोटों को स्नेह देना भूल गए हैं, दोस्ती भूलाकर दुश्मनी करना शुरू कर दिए हैं।
इसलिए आप सभी से हमारा निवेदन है कि आप होली के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक ही बनाए रखें और इसे बड़े ही प्यार और हर्ष – उल्लास के साथ ,भाईचारे का संबंध बनाकर आपस में मिलजुल कर मनाएं।
संदर्भ
होली का त्यौहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। जिसे हम बड़े ही उत्साह के साथ रंग गुलाल उड़ाते हुए, अपने वातावरण को रंगीन और खुशनुमा बनाते हुए हर साल मनाते हैं। इस सदन भारत में सभी धर्म के लोग आपस में भाईचारे का संबंध स्थापित करते हैं और एक दूसरे पर रंग गुलाल डालकर अच्छे-अच्छे पकवान खाकर गले मिलते हैं, नाचते गाते हैं, फागुन के गीत गाते हैं और त्यौहार की बधाई देते हैं।
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